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मूली की खेती

मूली की सफल खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

मूली की सफल खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

मूली की फसल बीज बुवाई के 1 महीने की समयावधि में पककर तैयार हो जाती है। सलाद में एक विशेष स्थान रखने वाली मूली सेहत के लिए अत्यंत फायदेमंद और अहम महत्व रखती है। 

मूली की खेती हर जगह काफी आसानी से की जा सकती है। बतादें, कि मूली अधिक तापमान के प्रति सहनशील है, किन्तु सुगंध विन्यास और आकार के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। 

क्योंकि, तापमान ज्यादा होने की वजह से जड़ें कठोर और चरपरी हो जाती हैं। मूली की सफल खेती के लिए 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना गया है। 

आज के वक्त में यह कहना कि सही नहीं होगा कि मूली केवल इसी मौसम में लगाई जाती है या लगाई जानी चाहिए। क्योंकि, मूली की उपलब्धता सर्दी, गर्मी और बरसात हर सीजन में बरकरार होती है।

मूली की खेती के लिए भूमि की तैयारी  

मूली की बेहतरीन पैदावार पाने के लिए रेतीली दोमट और दोमट मृदा ज्यादा उपयुक्त रहती है। मटियार भूमि मूली की फसल उत्पादकता के लिए अनुकूल नहीं होती है। 

क्योंकि, इसमें जड़ों का सही से विकास नहीं हो पाता है। बीज उत्पादन के लिए ऐसी जमीन का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पानी के निकास की बेहतरीन व्यवस्था हो और फसल के लिए प्रर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ उपलब्ध हो। 

मृदा गहराई तक हल्की, भुरभुरी व कठोर परतों से मुक्त होनी चाहिए। उसी खेत का चुनाव करें जिसमें विगत एक साल में बोई जाने वाली किस्म के अतिरिक्त कोई दूसरी किस्म बीज उत्पादन के लिए ना उगाई गई हो। 

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किसान भाई 5-6 जुताई कर खेत को बेहतर तरीके से तैयार करलें। मूली के लिए गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। क्योंकि, इसकी जड़ें जमीन में गहरी हो जाती हैं। 

गहरी जुताई के लिए ट्रेक्टर या मृदा पलटने वाले हल से जुताई करें। इसके बाद दो बार कल्टीवेटर चलाएं, जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं।

मूली की फसल की बुवाई 

मूली एक ऐसी फसल है, जिसको वर्ष भर उगाया जा सकता है। फिर भी व्यवसायिक स्तर पर इसे मैदानों में सितंबर से जनवरी तक और पहाड़ों में मार्च से अगस्त तक बिजाई की जाती है। 

बतादें, कि साल भर मूली उगाने के लिए इसकी प्रजातियों के मुताबिक, उनकी बुवाई के समय का चयन किया जाता है। जैसे कि मूली की पूसा रश्मि पूसा हिमानी की बुवाई का समय मध्य सितम्बर है तथा जापानी सफेद एवं व्हाईट आइसीकिल किस्म की बुवाई का समय मध्य अक्टूबर है। 

वहीं, पूसा चैत्की की बुवाई मार्च के आखिरी समय में करते हैं और पूसा देशी किस्म कि बुवाई अगस्त माह के बीच में की जाती है। 

मूली की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक प्रबंधन 

मूली की शानदार पैदावार लेने के लिये खेत में 15 से 20 टन गोबर की सड़ी खाद बुवाई के 15 दिन पूर्व खेत में डाल देनी चाहिए। इसके अलावा 80 से 100 किग्रा नत्रजन, 40-60 किग्रा फास्फोरस और 80-90 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। 

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नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के वक्त ही डाल देनी चाहिए। वहीं, बचे हुए आधे नत्रजन को दो बार में देना अत्यंत लाभकारी होता है। 

मूली की फसल में सिंचाई प्रबंधन   

वर्षा ऋतू की फसल में सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं है। परंतु, गर्मी वाली फसल में 4-5 दिन के अंदर सिंचाई करें। वहीं, सर्दी वाली फसल में 10 से 15 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। 

मूली की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं ? 

बतादें, कि फसलों व सब्जियों की भाँति मूली की उत्तम उपज के लिए बीज का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसलिए किसान मूली के बीज का बहुत सोच समझकर चयन करें। 

मूली की उन्नत किस्मों में पंजाब सफेद, रैपिड रेड, व्हाइट टिप, पूसा हिमानी, पूसा चेतवी, पूसा रेशमी और हिसार मूली नं. 1 आदि प्रमुख किस्में हैं। पूसा चेतवी जहां मध्यम आकार की सफेद चिकनी मुलायम जड़ वाली है, वहीं यह अत्यधिक तापमान वाले समय के लिए भी अधिक अनुकूल पाई गई है। 

इसी प्रकार पूसा रेशमी भी काफी ज्यादा उपयुक्त है। साथ ही, अगेती किस्म के तोर पर अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार अन्य किस्में भी अपना विशेष महत्व रखती हैं और हर जगह, हर समय लगाई जा सकती हैं। 

मूली की फसल में लगने वाले रोग एवं प्रबंधन

मूली की फसल को एफिड, सरसों की मक्खी, पत्ती काटने वाली सूंडी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिए देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम के आकार के बराबर हींग लेकर पीस कर बेहतरीन ढ़ंग से मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 ली. पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिड़काव करें।

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सफेद गेरुआ रोग: इसमें पत्ती के निचले स्तर पर सफेद फफोले बन जाते है।

रोकथाम: रिडोमिल एम. जेड..78 नामक फफूंदी नाशक को 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

सफेद किट्ट: पत्तियों की निचली सतह पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे दिखाई देते हैं। 

रोकथाम: बीज को बोने से पहले अच्छी तरीके से शोधित कर लेना चाहिए. बाविस्टीन, प्रोपीकोनाजोल 1.5-2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। 

झुलसा रोग: इस रोग में पत्तियों पर गोल.गोल छल्ले के रूप में धब्बे दिखाई पड़ते हैं।

रोकथाम: बीज को बाविस्टीन 1 से 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से सूचित करना चाहिए. मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

सब्जियां हमारे शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी होती हैं। सब्जियों में विभिन्न विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जो हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करती हैं जिससे हमारा शरीर कार्य करने योग बनता है। 

उन सब्जियों में से एक मूली (Radish) भी है, जिनको खाने से हमें लाभ होता हैं। मूली की खेती की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

मूली की खेती

मूली की फसल किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। यह कम लागत और कम समय में अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर इस फसल द्वारा फायदा पहुंचता है और किसान काफी अच्छे आय की प्राप्ति करते हैं।

भारत में मूली उत्पादन करने वाले कुछ मुख्य क्षेत्र है जैसे: पश्चिम बंगाल,असम, हरियाणा गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि क्षेत्रों में मूली की खेती काफी उच्च कोटि पर की जाती है। 

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मूली की ख़ेती के लिए उपयुक्त जलवायु

मूली की खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु ठंडी की होती हैं। ठंडी में मूली की फसल की अच्छी प्राप्ति होती है किसान ठंडी के मौसम में मूली की खेती कर बहुत ही अच्छा लाभ उठाते हैं। 

मूली की खेती के लिए 10 से 15 डिग्री सेल्सियस का तापमान बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है। कभी-कभी अधिक तापमान की वजह से मूली की जड़े कड़ी और कड़वी रह जाती है। 

इस प्रकार अधिक तापमान मूली की फसल के लिए उपयोगी नहीं है।किसानों द्वारा आप मूली की फसल को सालभर उगा सकते हैं पर उच्च मौसम ठंडी का है। 

मूली की ख़ेती के लिए भूमि को तैयार करना

मूली की ख़ेती के लिए भूमि का अच्छे से चयन कर लेना चाहिए। किसान मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाकों में बुवाई की सलाह देते हैं। किसान मैदानी क्षेत्रों में मूली की बुवाई का उचित समय सितंबर से जनवरी तक का उपयुक्त समझते हैं।

वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी इलाकों में मूली की बुवाई लगभग अगस्त के महीने तक होती है। मूली की खेती के लिए जीवांशयुक्त, दोमट मिट्टी या बलुई मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं। 

खेती के लिए यह दोनों मिट्टी बहुत ही उपयोगी होती है। बुवाई करने के लिए मिट्टी के लिए सबसे अच्छा पीएच मान 6 पॉइंट 5 के आस पास रखना जरूरी होता है। 

मूली की बुवाई

मूली की बुवाई से पूर्व खेतों को अच्छी तरह से जुताई की बहुत आवश्यकता होती है।खेत की जुताई आप को कम से कम 6 से 5 बार करनी होती है तब जाकर खेत अच्छी तरह से तैयार होते हैं। 

मूली की फसल गहरी जुताई मांगती है क्योंकि इसकी जड़े भूमि में काफी अंदर तक जाती है। जब जताई हो जाए तो इनको ट्रैक्टर या मिट्टी पलटने वाले हल द्वारा भी जुताई की जाती है। 

इसके बाद किसान करीब दो से तीन बार कल्टीवेटर खेतों में चला कर भी जुताई करते हैं। जुताई हो जाने के बाद पाटा लगाना अनिवार्य है।

मूली की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

मूली की ख़ेती के लिए किसान कुछ सामान्य प्रकार की खाद का इस्तेमाल करते हैं। जैसे: करीब 150 क्विंटल गोबर की खाद का यह फिर कम्पोस्ट का इस्तेमाल, नाइट्रोजन 100 किलो की मात्रा मे, स्फुर 50 किलो, 100 किलो लगभग पोटाश की आवश्यकता पड़ती है प्रति हेक्टेयर के हिसाब से, इन खादो को विभिन्न विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है। 

जैसे: स्फुर,पोटाश, गोबर की खाद को खेत तैयार करते वक्त इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के लगभग 15 से 30 दिनों के बाद दो भागों में विभाजित कर नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है।

मूली की ख़ेती के लिए सिंचाई

मूली की बुवाई, मूली की ख़ेती करते समय भूमि में नमी बरकरार रखना आवश्यक होता है। यदि भूमि नम नहीं है तो बुवाई करने के तुरंत बाद हल्की पानी से सिंचाई कर दें ताकि फसल उत्पादन हो सके। 

वर्षा ऋतु के मौसमों में मूली की फ़सल को सिंचाई देने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। वर्षा ऋतु में भूमि जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना आवश्यक होता है। मूली की फसल गर्मी में 4 से 5 दिन के अंदर सिंचाई मांगती है।

वहीं दूसरी ओर ठंडी के दिनों में मूली की फसल में 10 से 15 दिन के अंदर सिंचाई करना होता है। किसान आधी मेड़ की सिंचाई करते हैं इस प्रक्रिया द्वारा पूरी मेड़ में नमीयुक्त के साथ भुरभुरी पन बना रहता हैं।

मूली की फसल को कीट मुक्त रखने के उपाएं

मूली की फसल में विभिन्न विभिन्न प्रकार के कीट लग सकते हैं। फसल को कीट मुक्त बनाए रखने के लिए आपको खेत में खरपतवार की उचित व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए। खेतों में समय समय पर आपको निराई गुड़ाई करते रहना जरूरी होता है। 

मूली की फसल के लिए गहरी जुताई करें और जब सबसे आखिरी जुताई करें, तो खाद-उर्वरक में 6 से 8 किलोग्राम फिप्रोनिल को खाद में भली प्रकार से मिलाकर खेतों में डालें। इन प्रतिक्रिया को अपनाने से खेतों में दीमक तथा कीटों से बचाव किया जाता है।

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल मूलीकीखेती(Radish cultivation in hindi) काफी पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल के जरिए आपने विभिन्न विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त की होगी। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

मूली की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

मूली की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

मूली का सेवन भारत के सभी हिस्सों में किया जाता है। आज हम आपको इसमें होने वाले रोगों के बचाव के बारे में बताते हैं। भारत के हर हिस्से में मूली की खेती की जाती है। इसकी खेती के लिए रेतीली भुरभुरी मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मूली में विटामिन, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और कैल्सियम भरपूर मात्रा में मौजूद होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी की पीएच वैल्यू 6 से 8 के मध्य होनी चाहिए। आज हम आपको इसमें लगने वाले रोग एवं उनसे बचाव के विषय में आपको जानकारी देने जा रहे हैं।

बालदार सुंडी

यह रोग मूली में शुरुआत की अवस्था में ही लग जाता है। बालदार सुंडी रोग पौधों को पूरी तरह से खा जाता है। यह कीट पत्तियों सहित पूरी फसल का नुकसान कर देते हैं, जिससे पौधे अपना भोजन सूर्य के प्रकाश से ग्रहण नहीं कर पाते हैं। इसके बचाव के लिए क्विनालफॉस उर्वरक का उपयोग किया जाता है। यह भी पढ़ें:
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ह्वाइट रस्ट

इस प्रकार के कीट आकार में बेहद छोटे होते हैं। यह मूली के पत्तियों पर लगते हैं। यह कीट पत्तियों का रस चूसकर उसको पीले रंग का कर देते हैं। इस किस्म का रोग इस बदलते जलवायु परिवर्तन की वजह से ज्यादा देखने को मिल रहा है। इससे संरक्षण के लिए आप मैलाथियान उर्वरक की उचित मात्रा का छिड़काव मूली के पौधों पर कर सकते हैं।

झुलसा रोग

यह मौसम के मुताबिक लगने वाला रोग है। मूली में यह रोग जनवरी और मार्च महीने के मध्य लगता है। झुलसा रोग लगने से पौधों की पत्तियों पर काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। साथ ही, मूली का रंग भी काला पड़ जाता है। इससे बचाव के लिए मैन्कोजेब तथा कैप्टन दवा का उचित मात्रा मे जल के घोल के साथ छिड़काव करने से इस रोग को रोका जा सकता है। यह भी पढ़ें: किसान भाई सेहत के लिए फायदेमंद काली मूली की खेती से अच्छी आमदनी कर सकते हैं

काली भुंडी रोग

यह भी पत्तियों में लगने वाला एक कवक रोग है। इसमें पौधों की पत्तियों में पानी कमी होने की वजह से यह सूख सी जाती हैं। यदि यह रोग अन्य मूली में लगता है, तो यह पूरी फसल में फैल जाता है। किसान को बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है। इस रोग से पौधों को बचाने के लिए आप इसके लक्षण दिखते ही 6 से 10 दिन के समयांतराल पर मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव कर सकते हैं। उपरोक्त में यह सब मूली की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग हैं। इन रोगों की वजह से किसानों को काफी हानि का सामना करना पड़ता है।
बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा

बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा

बारिश के मौसम में खेतों में जहां पानी की समस्या नहीं रहती, वहीं ज्यादा बारिश की स्थिति में पैदावार के नष्ट होने का भी खतरा मंडराने लगता है। लेकिन हम बात कर रहे हैं बारिश के मौसम में कम समय, अल्प लागत में पनपने वाली ऐसी सब्जियों की जिनसे किसान वर्ग दमदार उत्पादन के साथ तगड़ा मुनाफा कमा सकता है। आम जन भी इससे अपने घरेलू खर्च में बचत कर सकते हैं। मानसून की बारिश सब्जियों की पैदावार के लिए एक तरह से आदर्श स्थिति है। ऐसा इसलिए क्योंकि बरसात के मौसम में सिंचाई की समस्या से किसान को छुटकारा मिल जाता है। देश के कई हिस्सों में मानसून की दस्तक के साथ ही वेजिटेबल फार्मिंग (Vegetable Farming) यानी सब्जियों की पैदावार का भी बढ़िया वक्त आ चुका है। मानसून का मौसम खरीफ की किसानी के लिए अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा कुछ सब्जियां ऐसी भी हैं जो बारिश के पानी की मदद से तेजी से वृद्धि करती हैं।

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 सिंचाई की लागत कम होने से ऐसे में किसान के लिए मुनाफे के अवसर बढ़ जाते हैं। तो फिर जानें कौन सी हैं वो सब्जियां और उन्हें किस तरह से उगाकर किसान लाभ हासिल कर सकते हैं। 

ककड़ी (खीरा) और मूली

किसानों के लिए सलाद के साथ ही तरकारी में उपयोग की जाने वाली ककड़ी (खीरा) और मूली बारिश में कमाई का तगड़ा जरिया हो सकती है। इन दोनों के पनपने के लिए बारिश का मौसम एक आदर्श स्थिति है। इतना ही नहीं इसकी पैदावार के लिए किसान को ज्यादा जगह की जरूरत भी नहीं पड़ती, बल्कि छोटी सी जगह पर किसान मात्र 21 से 28 दिनों के भीतर बेहतर कमाई कर सकते हैं। 

फली वाली सब्जियां

जी हां हरी-भरी बीन्स जैसे कि सेम, बरबटी लगाकर भी किसान कम समय में अच्छे उत्पादन के साथ बढ़िया आमदनी कर सकते हैं।

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फलीदार सब्जियों के पनपने के लिए जुलाई और अगस्त का महीना सबसे अनुकूल माना गया है। बेलदार पौधे होने के कारण इन्हें लगाने के लिए भी ज्यादा जरूरत नहीं होती। पेड़ या दीवार के सहारे फलीदार सब्जियों की पैदावार कर किसान रुपयों की बेल भी पनपा सकते हैं। मानसूनी जलवायु फलीदार पौधों के विकास के लिए आदर्श स्थिति भी है। 

कड़वा नहीं कमाऊ है करेला

कड़वाहट की बात आए तो भारत में यह जरूर कहते हैं कि, करेला वो भी नीम चढ़ा, लेकिन किसान के लिए कमाई के दृष्टिकोण से करेला मिठास घोल सकता है। दरअसल करेला कड़वा जरूर है, लेकिन यह कई तरीकों से औषधीय गुणों से भी भरपूर है। करेला मनुष्य को कई तरह की बीमारियों से बचाव करने में भी सहायक है। विविध व्यंजनों एवं औषधीय रूप से महत्वपूर्ण करेले की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है। तो किसान बारिश के कालखंड में बेलदार करेले की पैदावार कर अल्प अवधि में बड़ा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। 

हरी मिर्च की खनक और धनिया की महक

कहते हैं न साग-तरकारी का स्वाद हरी मिर्च और धनिया की रंगत के बगैर अधूरा है। खास तौर पर बारिश के मौसम में बाजार में हरी मिर्च और धनिया की मांग और दाम उफान पर रहते हैं। किसान के खेत की मिट्टी बलुआ दोमट या लाल हो तो यह फिर सोने पर सुहागा वाली स्थिति होगी। ये दोनों ही मिट्टी इनकी पैदावार के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं। बारिश के मौसम किसान खेत में, जबकि इसके स्वाद के दीवाने लोग अपने किचन या फिर छत एवं बाग-बगीचे में मिर्च और धनिया को उगा सकते हैं। किचन में उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक की जालीदार टोकनियों में भी पानी की मदद से हरा-भरा धनिया तैयार किया जा सकता है। 

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भटा, टमाटर की पैदावार

वैसे तो बैंगन यानी की भटा और टमाटर की पैदावार साल भर की जा सकती है। लेकिन बारिश का मौसम इन दोनों सब्जियों की पैदावार के लिए बहुत अनुकूल माना गया है। सर्दी में भी इनकी खेती की जा सकती है। तो क्या तैयार हैं आप अपने खेत, छत या फिर बगीचे में ककड़ी, मूली, फलीदार सब्जियों, धनिया-मिर्च और भटा-टमाटर जैसी किफायती सब्जियों को उगाने के लिए।

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

सितंबर महीने में अपने परती पड़े खेत में करें इन फली या सब्जियों की बुवाई

भारत के खेतों में मानसून की शुरुआत में बोयी गयी
खरीफ की फसलों को अक्टूबर महीने की शुरुआत में काटना शुरू कर दिया जाता है, पर यदि किसी कारणवश आपने खरीफ की फसल की बुवाई नहीं की है और जुलाई या अगस्त महीने के बीत जाने के बाद सितंबर में किसी फसल के उत्पादन के बारे में सोच रहे हैं, तो आप कुछ फसलों का उत्पादन कर सकते है, जिन्हें मुख्यतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मानसून में बदलाव :

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में भारत के लगभग सभी हिस्सों से मानसून लौटना शुरू हो जाता है और इसके बाद मौसम ज्यादा गर्म भी नहीं रहता और ना ही ज्यादा ठंडा रहता है। इस मौसम में किसी भी सीमित पानी की आवश्यकता वाली फसल की पौध को वृद्धि करने के लिए एक बहुत ही अच्छी जलवायु मिल सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस्तेमाल आने वाली सब्जियों की बुवाई मुख्यतः अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह या फिर सितंबर में की जाती है।

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भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल कृषि क्षेत्र से जुड़ी इसी संस्थान की एडवाइजरी के अनुसार, भारत के किसान नीचे बताइए गई किसी भी फली या सब्जियों का उत्पादन कर सितंबर महीने में भी अपने परती पड़े खेत से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
  • मटर की खेती

 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में के साथ 400 मिलीमीटर की बारिश में तैयार होने वाली यह सब्जी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है। मानसून के समय अच्छी तरीके से पानी मिली हुई मिट्टी इसके उत्पादन को काफी बढ़ा सकती है।अपने खेत में दो से तीन बार जुताई करने के बाद इसके बीज को जमीन से 2 से 3 सेंटीमीटर के अंदर दबाकर उगाया जा सकता है।
मटर की खेती से संबंधित पूरी जानकारी और बीमारियों से इलाज के लिए यह भी देखें : जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें
  • पालक की खेती

वर्तमान में उत्तरी भारत में पालक के लगभग सभी किसानों के द्वारा हाइब्रिड यानी कि संकर बीज का इस्तेमाल किया जाता है। 40 से 50 दिन में पूरी तरह से तैयार होने वाली यह सब्जी किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है, हालांकि इसकी पौध लगाने से पहले किसानों को मिट्टी की अम्लता की जांच जरूर कर लेनी चाहिए। 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य बेहतर उत्पादन देने वाली यह सब्जी पतझड़ के मौसम में सर्वाधिक वृद्धि दिखाती है। प्रति हेक्टेयर 20 से 30 किलोग्राम बीज की मात्रा से बुवाई करने के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए।
पालक की खेती के दौरान खेत को तैयार करने की विधि और इस फसल में लगने वाले रोगों से निदान के बारे में 
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  • पत्ता गोभी की खेती

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में शुरुआत में नर्सरी में पौध उगाकर 20 से 40 दिन में खेत में पौध को स्थानांतरित कर उगायी जा सकने वाली यह सब्जी भारत में लगभग पूरे वर्ष भर इस्तेमाल की जाती है। 70 से 80 दिनों के अंतर्गत पूरी तरह तैयार होने वाली यह फसल पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी सिंचाई वाली मिट्टी में आसानी से बेहतरीन उत्पादकता प्रदान कर सकती है। ड्रिप सिंचाई विधि तथा उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से इस फसल की पत्तियों की ग्रोथ काफी तेजी से बढ़ती है। 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में तैयार होने वाली यह सब्जी की फसल जब तक कुछ पत्तियां नहीं निकालती है, अच्छी मात्रा में पानी की मांग करती है। इस फसल की खास बात यह है कि इससे बहुत ही कम जगह में अधिक पैदावार की जा सकती है, क्योंकि इसके दो पौध के मध्य की दूरी 30 सेंटीमीटर तक रखनी होती है, इस वजह से एक हेक्टेयर में लगभग 20 हज़ार से 40 हज़ार छोटी पौध लगायी जा सकती है।
पत्ता गोभी फसल तैयार करने की संपूर्ण जानकारी और इसकी वृद्धि के दौरान होने वाले रोगों के निदान के लिए,
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  • बैंगन की खेती

भारत में अलग-अलग नामों से उगाई जाने वाली यह सब्जी 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के मध्य अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। हालांकि, इस सब्जी की खेती खरीफ और रबी की फसल के अलावा पतझड़ के समय भी की जाती है। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उगने वाली यह फसल अम्लीय मिट्टी में सर्वाधिक प्रभावी साबित होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार एक हेक्टेयर क्षेत्र में बैंगन उत्पादित करने के लिए लगभग 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इन बीजों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है और उसके बाद खेत को अच्छी तरीके से तैयार कर 50 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बुवाई जाती है। ऑर्गेनिक खाद और रासायनिक उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से 8 से 10 दिन के अंतराल पर बेहतरीन सिंचाई की मदद से भारत के किसान काफी मुनाफा कमा रहे है।
बैंगन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई नई विधियों की संपूर्ण जानकारी के लिए, 
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  • मूली की खेती

सितंबर से लेकर अक्टूबर के महीनों में उगाई जाने वाली यह सब्जी बहुत ही जल्दी तैयार हो सकती है। पिछले कुछ समय में बाजार में बढ़ती मांग की वजह से इस फसल का उत्पादन करने वाले किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है। 15 से 20 सेंटीग्रेड के तापमान में अच्छी उत्पादकता देने वाली यह फसल उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में अपनी अलग-अलग किस्मों के अनुसार प्रभावी साबित होती है। किसान भाई कृषि विज्ञान केंद्र से अपनी खेत की मिट्टी की अम्लीयत या क्षारीयता की जांच अवश्य कराएं, क्योंकि इस फसल के उत्पादन के लिए खेत की पीएच लगभग 6.5 से 7.5 के मध्य होनी चाहिए। सितंबर के महीने में अच्छी तरीके से खेत को तैयार करने के बाद गोबर की खाद का इस्तेमाल कर, 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई करते हुए उचित सिंचाई प्रबंधन के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
मूली की फसल में लगने वाले कई प्रकार के रोग और इसकी अलग-अलग किस्मों की जलवायु के साथ उत्पादकता का पता लगाने के लिए, 
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  • लहसुन की खेती

ऊटी 1 और सिंगापुर रेड तथा मद्रासी नाम की अलग-अलग किस्म के साथ उगाई जाने वाली लहसुन की फसल लगभग 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बोयी जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी तरह से सिंचाई की हुई मिट्टी इस फसल की उत्पादकता के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित होती है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 500 से 600 किलोग्राम बीज के साथ उगाई जाने वाली यह खेती कई प्रकार के रोगों के खिलाफ स्वतः ही कीटाणुनाशक की तरह बर्ताव कर सकती है। बलुई और दोमट मिट्टी में प्रभावी साबित होने वाली यह फसल भारत में आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात राज्य में उगाई जाती है। वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा लहसुन की गोदावरी और श्वेता किस्मों को काफी पसंद किया जा रहा है। इस फसल का उत्पादन जुताई और बिना जुताई वाले खेतों में किया जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्र वाले इलाकों में सितंबर के महीने को लहसुन की बुवाई के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जबकि समतल मैदानों में इसकी बुवाई अक्टूबर और नवंबर महीने में की जाती है।
लहसुन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और जलवायु के साथ उनकी प्रभावी उत्पादकता को जानने के अलावा,
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भारत के किसान भाई इस फसल के बारे में कम ही जानकारी रखते है, परंतु अरुगुला (Arugula) सब्जी से होने वाली उत्पादकता से कम समय में काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसे भारत में गारगीर (Gargeer) के नाम से जाना जाता है।यह एक तरीके से पालक के जैसे ही दिखने वाली सब्जी की फसल होती है जो कि कई प्रकार के विटामिन की कमी को दूर कर सकती है। पिछले कुछ समय से उत्तरी भारत के कुछ राज्यों में इस सब्जी की डिमांड बढ़ने की वजह से कई युवा किसान इसका उत्पादन कर रहे है। सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बोई जाने वाली यह सब्जी वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में अच्छा उत्पादन दे सकती है, परंतु यदि मिट्टी की ph 7 से अधिक हो तो यह अधिक प्रभावी साबित होती है। पानी के सीमित इस्तेमाल और जैविक खाद की मदद से इस फसल की वृद्धि दर को काफी तेजी से बढ़ाया जा सकता है। इस सब्जी की फसल की छोटी पौध 7 से 10 दिन में अंकुरित होना शुरू हो जाती है। बहुत ही कम खर्चे पर तैयार होने वाली यह फसल 30 दिन में पूरी तरीके से तैयार हो सकती है। दक्षिण भारत के राज्यों में इसकी बुवाई सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जाती है, जबकि उत्तरी भारत में यह अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में बोयी जाती है। इस फसल के उत्पादन में बहुत ही कम सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है परंतु फिर भी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के सीमित इस्तेमाल से उत्पादकता को 50% तक बढ़ाया जा सकता है।


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आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को सितंबर महीने में बुवाई कर उत्पादित की जा सकने वाली फसलों के बारे में दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी और यदि आप भी किसी कारणवश खरीफ की फसल का उत्पादन नहीं कर पाए है तो खाली पड़ी हुई जमीन में इन सब्जी की फसलों का उत्पादन कर कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।
इस तरह से मूली की खेती करने से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

इस तरह से मूली की खेती करने से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

भारत में ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती करते हैं। जिसमें वो रबी, खरीफ, दलहन और तिलहन की फसलें उगाते हैं। इन फसलों के उत्पादन में लागत ज्यादा आती है जबकि मुनाफा बेहद कम होता है। ऐसे में सरकार ने किसानों की सहायता करने के लिए बागवानी मिशन को लॉन्च किया है। जिसमें सरकार किसानों को बागवानी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि किसान ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा पाएं और उनकी इनकम में बढ़ोत्तरी हो। बागवानी फसलों की खेती में लागत बेहद कम आती है, इसलिए इनमें मिलने वाला मुनाफा ज्यादा होता है। सरकार के विशेषज्ञों का मानना है कि बागवानी फसलों से किसानों की इनकम में बढ़ोत्तरी हो सकती है। अगर किसान भाई मूली की खेती करें तो वो बेहद कम समय में अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। मूली विटामिन से भरपूर होती है। इसमें मुख्यतः विटामिन सी पाया जाता है। साथ ही मूली फाइबर का एक बड़ा स्रोत है। ऐसे में यह इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है। मूली की खेती भारत में किसी भी मौसम में की जा सकती है।

मूली की खेती के लिए मिट्टी का चयन

सामान्यतः मूली की खेती हर तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। लेकिन भुरभुरी, रेतली दोमट मिट्टी में इसके शानदार परिणाम देखने को मिलते हैं। भारी और ठोस मिट्टी में मूली की खेती करने से बचना चाहिए। इस तरह की मिट्टी में मूली की जड़ें टेढ़ी हो जाती हैं। जिससे बाजार में मूली के उचित दाम नहीं मिलते। मिट्टी का चयन करते समय ध्यान रखें कि इसका पीएच मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए।

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ऐसे करें जमीन की तैयारी

सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लें। खेत में ढेलियां नहीं होनी चाहिए। जुताई के समय खेत में 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से गोबर की सड़ी हुई खाद डालें।  प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा अवश्य फेरें।

मूली की बुवाई

मूली के बीजों की बुवाई पंक्तियों में या बुरकाव विधि द्वारा की जाती है। अच्छी पैदावार के लिए बीजों को 1.5 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। बुवाई के दौरान ध्यान रखें कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए और पौध से पौध की दूरी 7.5 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक एकड़ खेत में बुवाई के लिए 5 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है। मिट्टी के बेड पर बुवाई करने पर मूली की जड़ों का शानदार विकास होता है।

मूली की फसल में सिंचाई

गर्मियों के मौसम में मूली की फसल में हर 6 से 7 दिन बाद सिंचाई करें। सर्दियों के मौसम में 10 से 12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करना चाहिए। मूली की फसल में जरूरत से ज्यादा सिंचाई नहीं करना चाहिए। ज्यादा सिंचाई करने से जड़ों का आकार बेढंगा और जड़ों के ऊपर बालों की वृद्धि बहुत ज्यादा हो जाती है। गर्मियों के मौसम में कटाई के पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे मूली ताजा दिखती है। साथ ही खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।

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फसल की कटाई

मूली की फसल बुवाई के 40 से 60 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई पौधे को हाथों से उखाड़कर की जाती है। उखाड़ने के बाद मूली को धोएं और उनके आकार के अनुसार अलग कर लें। इसके बाद इन्हें टोकरियों और बोरियों में भरकर मंडी में भेज दें।

मूली की खेती में इतनी हो सकती है कमाई

भारत के विभिन्न राज्यों में मूली की अलग-अलग किस्मों की खेती की जाती है। जिनका उत्पादन भी अलग-अलग होता है। भारत में मुख्यतः पूसा देसी, पूसा चेतकी, पूसा हिमानी, जापानी सफेद, गणेश सिंथेटिक और पूसा रेशमी किस्म की मूली की किस्मों का चुनाव किया जाता है। ये किस्में बहुत जल्दी तैयार हो जाती हैं। एक हेक्टेयर खेत में मूली की खेती करने पर किसान भाई 250 क्विंटल तक की पैदावार ले सकते हैं। जिससे वो 2 लाख रुपये बेहद आसानी से कमा सकते हैं।
किसान भाई सेहत के लिए फायदेमंद काली मूली की खेती से अच्छी आमदनी कर सकते हैं

किसान भाई सेहत के लिए फायदेमंद काली मूली की खेती से अच्छी आमदनी कर सकते हैं

काली मूली में एंटीऑक्सीडेंट प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जो हमारे दिल को स्वस्थ और निरोगी रखने में सहायक होती है। इसके भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का भी कमाल का गुण विघमान होता है। शर्दियों के महीनों में किसान लाल मूली की बुवाई करना उपयुक्त रहता है। बतादें, कि दिसंबर से लगाकर फरवरी तक का महीना इसकी खेती के लिए काफी अनुकूल होता है। इसके लिए समुचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। बरसात के मौसम में मूली की फसल बुआई के तकरीबन 35 से 45 दिन के अंदर मंडियों में बेचने योग्य पककर तैयार हो जाते हैं। अनुमानुसार, मूली का औसतन उत्पादन 80 से 105 क्विंटल प्रति एकड़ और बीज 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ होते हैं।

क्या काली मूली की खेती किसी विशेष ढ़ंग से की जाती है

काली
मूली की खेती भी एकदम सफेद मूली की भांति की जाती है। बतादें कि यह काली मूली बिल्कुल शलजम की तरह होती है। इसका बाहरी भाग बिल्कुल काला होता है। वहीं, आंतरिक रूप से यह भी आम मूली की भांति सफेद होती है। परंतु, स्वाद में बेहद असमानता होती है। खेती के संबंध में देखा जाए तो आमतौर पर इसकी खेती शर्दियों में अधिक होती है। परंतु, आजकल किसान इसे पूरे वर्षभर उत्पादित करते हैं। बाजार में यह सफेद मूली से कहीं अधिक महंगी बेची जाती है। भारत समेत संपूर्ण विश्व के अंदर इसकी मांग विगत कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है। इसके पीछे की मुख्य वजह इसमें विघमान पोषक तत्व हैं। ये भी देखें: मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

आखिर काली मूली के क्या-क्या लाभ होते हैं

ब्लैक रैडिश यानी कि काली मूली लोगों के शरीर के लिए एक रामबाण है। काली मूली में एंटीऑक्सीडेंट की प्रचूर मात्रा उपलब्ध रहती है, जो कि हमारे दिल को स्वस्थ और सेहतमंद रखती है। बतादें, कि इसके भीतर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का भी कमाल का गुण होता है। इसके अंदर उपस्थित थियामिन,विटामिन-ई, प्रोटीन, विटामिन-बी 6 जैसे पोषक तत्व हमारे शरीर को अंदर से सशक्त बनाते हैं। कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है, कि काली मूली हमें कब्ज में भी सहूलियत और आराम प्रदान करती है। इसके अंदर मौजूद मैंगनीज, फोलेट, आइसोटीन और सोर्बिटोल कब्ज को आपसे दूर रखने में अहम सहायक भूमिका अदा करते हैं।